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गरीब का पैबंद

vevaak mahesh
vevaak mahesh
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====गरीब का पैबंद======

जी रहे हैं जिंदगी हम,

ऐश और आराम से,

चल निकल कर देख बाहर,

जिंदगी क्या कह रही ,

हँस रही है एक तरफ तो,

एक तरफ दुख सह रही,

सिमट कर बैठे हैं कक्का,

घोंटूओं मैं सिर छिपा,

सर्दियों ने सितम ढाया,

ना मौत बाँहें गह रही,

आँख फाड़े सिसकती है,

माँ की ममता द्वार पर,

जो सहेजी थी दीवारें,

शील की सब ढह गयी,

आसमान भी दे रहा है,

दंश रह रह देह पर,

बरसते है अब अंगारे,

बादलों के छटते ही,

आज एक पैबंद चुनरी का,

हंसा कुछ जोर से,

झांकता है गेन्हुआ तन,

आब तेरी क्या रही,

सांझ को चूल्हे ने पूछा,

आग क्या तीरथ गयी,

चीख कर के पेट बोला,

जल रहे हैं दिल कई,

आ बढ़ाएं कदम अपना,

‘प्रेम‘वाली राह में,

आमिलेंगी खुशियों वाले,

चौक पर गलियाँ कई ,

+++++++महेश चंद्र शर्मा ‘प्रेम‘

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